Monday 27 April 2015

नींद!!

मुझे नींद नहीं आती है! 
जब भी कभी बंद आँखों से तुझे खोजने निकलता हु, तू ना जाने कहा चली जाती है.
अपनी कहानियो, सपनो और अरमानो की भीड़ में खोजता हुआ तुझे ना जाने कहा चला जाता हूँ मैं.
दिखती है मुझे बातें, कोशिशें, कामयाबियाँ, नाकामियाँ, बस एक तू ही है जो नज़र नहीं आती है.  
तुझे ढूँढता हूँ उन यादों में, उसकी बाहों में, उसकी जुल्फों के साए में, उसकी आँखों की गहरायी में के शायद तू बैठी हो कही छुप के. 

मुझे नींद नहीं आती है!

यादों की सलवटे हटा के देखता हूँ, दोस्ती और दुश्मनी के पार, अच्छे और बुरे के पीछे भी तुझे ढूँढ आता हूँ पर एक तू है की ना जाने कहा गुम हो जाती है. 

मुझे नींद नहीं आती है!
ढूँढ लेता हु तुझे इन बंद आखों में, ज़मीन से फ़लक तक पर तू है के कम्बख्त हाथ ही नहीं आती है

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