Monday 21 September 2015

सफ़र!!

ज़िन्दगी एक किनारे से दुसरे की तरफ चली जा रही है, कई पड़ाव आते है पर वह मुकाम नहीं, कभी लगता है मुकाम की तलाश है मुझे और कभी नहीं.
क्या मुकाम वह है जो लगता है मुझे या कुछ और, क्या ज़िन्दगी वह है जो मुझे लगती है या कुछ और?
मैं तो बस सफ़र करता जा रहा हूँ तलाश में मुकाम की, या फिर बस सफ़र कर रहा हूँ....
समझ से परे, अंजाम से बेख़बर बस चला जा रहा हूँ!!

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